Mushroom disease
मशरूम खरपतवार नियंत्रण :
निर्जर्म किया जाता है। लेकिन घरेलु कृषकों के लिए यह मंहगा
तरीका उपयुक्त नहीं है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रोगों
के बारे में जानकारी लेकर उनसे कुछ हद तक बचाव किया जा सकता है।
आइए रोगों(कवकों) के बारे में जानकारी लेते हैं :
कम्पोस्ट में एक चिरपरिचित फफूंद पैनिसीलम फफूंद उग सकता है।
अगर कोप्राइनस प्रजाति का फफूंद कम्पोस्ट में उगे तो समझ लेना
चाहिए कि कम्पोस्ट में अमोनिया गैस अधिक मात्रा में बनी हुई है।
इन स्थितियों में ओडोसैफालम प्रजाति भी उग सकता है।
कम्पोस्ट बनाने में कार्बन और नाइट्रोजन का उचित अनुपात
बनाए रखना जरूरी है।
कभी कभी कार्बन की मात्रा नाइट्रोजन से अधिक हो जाता है।
ऐसी स्थिति में फफूंद की( ट्राकोइर्मा प्रजाति) उग जाती है।
साधारण भाषा में इसे हरी फफूंद कहते हैं। यह तभी उगती है
जब कार्बन की मात्रा नाइट्रोजन से अधिक होता है।
कार्बोहाइड्रेट से कार्बन बन जाता है। कम्पोस्ट का बहुत बड़ा भाग पुआल(भूसा), और
चोकर से बना होता है जिसका मुख्य घटक कार्बोहाइड्रेट होता है।
अगर नाइट्रोजन की मात्रा कम हो जाती है तो पुआल और चोकर का
पाचन देरी से होगा। तभी कार्बन की मात्रा नाइट्रोजन से अधिक हो जाती है।
अगर कार्बोहाइड्रेट आंशिक बिघटित होते हैं तो सहज शर्करा मुक्त होती है। तब
घुसर रंग का फफूंद (डोराटोमाइसेज माइक्रोसपोरस) को बढावा देने में सक्षम है।
इसके अलावा (ऐस्परजिलस) तथा (पैनिसीलिनम) फफूंद भी उग सकती है।
कुछ फफूंद जैसे (थीलैविया थेरीमोरफिला), (स्पोरोबोलोमाइसीज) और (ट्राईकोथेशियम रोजमा)।
जिसे साधारण भाषा में व्हाईट प्लास्टर मोल्ड कहते हैं। ये सभी फफूंद तब उत्पन्न होते हैं जब
प्रोटीनो के विघटन से एमिनो अम्ल जमा हो जाते हैं। और यह तब होता है जब कम्पोस्ट के
पहले चरण में संघटकों का पाचन तेजी से हो और बाद के चरणों में कम्पोस्ट पर समुचित ध्यान
नहीं दिया जाय तो व्हाईट प्लास्टर मोल्ड के उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है।
यदि कम्पोस्ट का PH मान कम हो जाय तो अम्लता बढने से आक्सीजन की कमी पैदा हो जाती है
तब वे जीवाणु पैदा होते हैं जिन्हें आक्सीजन की जरूरत नहीं होती है।आक्सीजन की कमी फफूंद के लिए
उपयुक्त नहीं है। लेकिन जीवाणु परोक्ष रूप से फफूंद पैदा करने में सहायक होते हैं। क्योंकि वे
उपापचय(मेटाबोलिटस) बनाते हैं जो फफूंद को बढाता है।
अंतिम चरणों में जब केसिंग को तोङकर फलघर बाहर निकलते हैं तब एक फफूंद का आक्रमण होता है
जिसे आलिव गीन मोल्ड ( चैलोमियम आलिवेशम) के नाम से जाना जाता है।
भूरी प्लास्टर मोल्ड ( पापुलेस्परा बाईसिना) एक फफूंद है जो कम्पोस्ट में अधिक नमी के कारण उगती है।
इसलिए कम्पोस्ट में नमी पर ध्यान देना चाहिए।
काबवेब मिल्डयू (Cobweb Mildew )
जाती है जो बाद में बदलकर गुलाबी रंग का हो जाता है। यह मशरूम पर बुरा असर डालता है। इसके
आक्रमण से मशरूम गेद के आकार का होने लगता है और अन्दर का भाग सङा हुआ होता है।
यह फफूंद नमी की अधिकता और हवा के कम आवागमन से उगता है।
इसके उपचार के लिए डाईथेन एम 48 (2%) का स्प्रे करना चाहिए।
इसके अलावा आप हाइड्रोजन पराक्साइड (3%) का प्रयोग कर सकते हैं कुछ दिनों के
अंतराल में 3 – 4 स्प्रे करें तो लाभ होगा।
कुछ मात्रा में आइसोप्रोपिल एल्कोहल का प्रयोग कर सकते हैं।
भूरी प्लास्टर मोल्ड(Brown Plaster Mould)
टेल्योमारफिक।)
अंडजनन के उपरान्त यह फफूंद उगती है इसका रंग पहले सफेद होता है
जो बाद में भूरा हो जाता है। यह फफूंद बहुत तेजी से फैलती है। और उत्पादन को प्रभावित करती है।
यह फफूंद कमरे के तापमान और नमी की अधिकता से
उत्पन्न होता है।PH मान की अघिकता तथा कम्पोस्ट में जिप्सम की कमी के
कारण भी यह समस्या आती है।
इसके बचाव के लिए फार्मलीन ( 2% ) का छिङकाव करना चाहिए।
गहरी हरी फफूंद (Olive - Green Mould)
रंग सफेद होता है जो बाद में गहरा हरा हो जाता है। यदि कम्पोस्ट सही तरह
तैयार ( बारीक ) नहीं है तथा हवा का आवागमन सही नहीं है। नमी की मात्रा
अधिक है। तो यह फफूंद पनपता है।
इसके रोकथाम के लिए प्रभावित भागों में कैप्टान (2%) अथवा बेनलेट (0.05%)
का छिङकाव करना चाहिए।
नाइट्रोजन का प्रयोग उचित अनुपात में करें।
हरी फफूंद (Green Mould)
यह फफूंद केसिंग पर उगती है। और फलघरों पर बुरा प्रभाव डालती है। इसके बीजाणु हवा में
तेजी से फैलतें हैं। इसके बचाव के लिए बेनलेट (2%) का छिङकाव करना चाहिए।
पीला फफूंद (Yellow mould)
( माइसेलियोफैथोरा ल्यूटिया, क्राइसोस्परमम मरडेरियम,सीपीडोनियम क्राइसोस्परमम, हाइपोमाइसीज क्राइसोस्परमम।)
यह फफूंद आरंभ में सफेद रंग का होता है और बाद में पीले रंग का हो जाता है। सल्फर के
रंग से मिलता – जुलता रहता है। यह फफूंद बहुत ज्यादा मात्रा में स्पोर पैदा करता है। और फलघर को हानी पहुंचाता है।
इससे बचने के लिए कम्पोस्ट को जीवाणु मुक्त रखना चाहिए।
गुच्छा रोग (Truffle Disease)
क्रीम जैसा आकार गोल होता है। इसका उपरी भाग मष्तिष्क के जैसा दिखता है। अंतिम अवस्था में
इसका रंग भूरा हो जाता है। कमरे हवा का आवागमन अच्छा हो तथा तापमान 18c से कम हो
तो यह रोग नहीं होता।
बुलबुला रोग ( Bubble Disease )
का तना सामान्य से अधिक मोटा तथा टोपी सामान्य से छोटी हो जाती है। जिससे
उत्पादन प्रभावित होता है। यह रोग केसिंग की खराबी के कारण होता है। इसके
रोकथाम के लिए फार्मलीन का छिङकाव करना चाहिए। या फिर उन्हें तोड़कर जला
देना चाहिए। इसके बाद डाईथेन m 45 (2%) तथा बेनलेट (0.05%) का एक के बाद दूसरे का छिङकाव करना चाहिए।
Mushroom disease control
Reviewed by vikram beer singh
on
يونيو 17, 2019
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